रविवार 3 अगस्त, 2025



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वर्ण पाठ: गलातियों 6 : 2

तुम एक दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो।



Golden Text: Galatians 6 : 2

Bear ye one another’s burdens, and so fulfil the law of Christ.




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उत्तरदायी अध्ययन: 1 पतरस 4 : 8-11


8.     और सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो; क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढांप देता है।

9.     बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे की पहुनाई करो।

10.     जिस को जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों की नाईं एक दूसरे की सेवा में लगाए।

11.     यदि कोई बोले, तो ऐसा बोले, मानों परमेश्वर का वचन है; यदि कोई सेवा करे; तो उस शक्ति से करे जो परमेश्वर देता है; जिस से सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्वर की महिमा प्रगट हो: महिमा और साम्राज्य युगानुयुग उसी की है। आमीन॥

Responsive Reading: I Peter 4 : 8-11

8.     And above all things have fervent charity among yourselves: for charity shall cover the multitude of sins.

9.     Use hospitality one to another without grudging.

10.     As every man hath received the gift, even so minister the same one to another, as good stewards of the manifold grace of God.

11.     If any man speak, let him speak as the oracles of God; if any man minister, let him do it as of the ability which God giveth: that God in all things may be glorified through Jesus Christ, to whom be praise and dominion for ever and ever. Amen.



पाठ उपदेश



बाइबल


1. फिलिप्पियों 2 : 3, 4

3     विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।

4     हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करे।

1. Philippians 2 : 3, 4

3     Let nothing be done through strife or vainglory; but in lowliness of mind let each esteem other better than themselves.

4     Look not every man on his own things, but every man also on the things of others.

2. यशायाह 54 : 2

2     अपने तम्बू का स्थान चौड़ा कर, और तेरे डेरे के पट लम्बे किए जाएं; हाथ मत रोक, रस्सियों को लम्बी और खूंटों को दृढ़ कर।

2. Isaiah 54 : 2

2     Enlarge the place of thy tent, and let them stretch forth the curtains of thine habitations: spare not, lengthen thy cords, and strengthen thy stakes;

3. रूत 1 : 1 (और एक), 2 (से 3rd ,), 3-6, 8, 14 (और ओर्पा), 16, 18, 22

1     यहूदा के बेतलेहेम का एक पुरूष अपनी स्त्री और दोनों पुत्रों को संग ले कर मोआब के देश में परदेशी हो कर रहने के लिये चला।

2     उस पुरूष का नाम एलीमेलेक, और उसकी पत्नि का नाम नाओमी, और उसके दो बेटों के नाम महलोन और किल्योन थे।

3     और नाओमी का पति एलीमेलेक मर गया, और नाओमी और उसके दोनों पुत्र रह गए।

4     और इन्होंने एक एक मोआबिन ब्याह ली; एक स्त्री का नाम ओर्पा और दूसरी का नाम रूत था। फिर वे वहां कोई दस वर्ष रहे।

5     जब महलोन और किल्योन दोनों मर गए, तब नाआमी अपने दोनों पुत्रों और पति से रहित हो गई।

6     तब वह मोआब के देश में यह सुनकर, कि यहोवा ने अपनी प्रजा के लोगों की सुधि लेके उन्हें भोजनवस्तु दी है, उस देश से अपनी दोनों बहुओं समेत लौट जाने को चली।

8     तब नाओमी ने अपनी दोनों बहुओं से कहा, तुम अपने अपने मैके लौट जाओ। और जैसे तुम ने उन से जो मर गए हैं और मुझ से भी प्रीति की है, वैसे ही यहोवा तुम्हारे ऊपर कृपा करे।

14     ...और ओर्पा ने तो अपनी सास को चूमा, परन्तु रूत उस से अलग न हुई।

16     रूत बोली, तू मुझ से यह बिनती न कर, कि मुझे त्याग वा छोड़कर लौट जा; क्योंकि जिधर तू जाए उधर मैं भी जाऊंगी; जहां तू टिके वहां मैं भी टिकूंगी; तेरे लोग मेरे लोग होंगे, और तेरा परमेश्वर मेरा परमेश्वर होगा.

18     जब उसने यह देखा कि वह मेरे संग चलने को स्थिर है, तब उसने उस से और बात न कही।

22     इस प्रकार नाओमी अपनी मोआबिन बहू रूत के साथ लौटी, जो मोआब के देश से आई थी। और वे जौ कटने के आरम्भ के समय बेतलेहेम में पहुंची॥

3. Ruth 1 : 1 (And a), 2 (to 3rd ,), 3-6, 8, 14 (and Orpah), 16, 18, 22

1     And a certain man of Beth-lehem-judah went to sojourn in the country of Moab, he, and his wife, and his two sons.

2     And the name of the man was Elimelech, and the name of his wife Naomi, and the name of his two sons Mahlon and Chilion,

3     And Elimelech Naomi’s husband died; and she was left, and her two sons.

4     And they took them wives of the women of Moab; the name of the one was Orpah, and the name of the other Ruth: and they dwelled there about ten years.

5     And Mahlon and Chilion died also both of them; and the woman was left of her two sons and her husband.

6     Then she arose with her daughters in law, that she might return from the country of Moab: for she had heard in the country of Moab how that the Lord had visited his people in giving them bread.

8     And Naomi said unto her two daughters in law, Go, return each to her mother’s house: the Lord deal kindly with you, as ye have dealt with the dead, and with me.

14     and Orpah kissed her mother in law; but Ruth clave unto her.

16     And Ruth said, Intreat me not to leave thee, or to return from following after thee: for whither thou goest, I will go; and where thou lodgest, I will lodge: thy people shall be my people, and thy God my God:

18     When she saw that she was stedfastly minded to go with her, then she left speaking unto her.

22     So Naomi returned, and Ruth the Moabitess, her daughter in law, with her, which returned out of the country of Moab: and they came to Beth-lehem in the beginning of barley harvest.

4. रूत 2 : 2, 3, 8-12, 17 (से ,), 20 (से 1st .)

2     और मोआबिन रूत ने नाओमी से कहा, मुझे किसी खेत में जाने दे, कि जो मुझ पर अनुग्रह की दृष्टि करे, उसके पीछे पीछे मैं सिला बीनती जाऊं।

3     सो वह जा कर एक खेत में लवने वालों के पीछे बीनने लगी।

8     तब बोअज ने रूत से कहा, हे मेरी बेटी, क्या तू सुनती है? किसी दूसरे के खेत में बीनने को न जाना, मेरी ही दासियों के संग यहीं रहना।

9     जिस खेत को वे लवतीं हों उसी पर तेरा ध्यान बन्धा रहे, और उन्हीं के पीछे पीछे चला करना। क्या मैं ने जवानों को आज्ञा नहीं दी, कि तुझ से न बोलें? और जब जब तुझे प्यास लगे, तब तब तू बरतनों के पास जा कर जवानों का भरा हुआ पानी पीना।

10     तब वह भूमि तक झुककर मुंह के बल गिरी, और उस से कहने लगी, क्या कारण है कि तू ने मुझ परदेशिन पर अनुग्रह की दृष्टि करके मेरी सुधि ली है?

11     बोअज ने उत्तर दिया, जो कुछ तू ने पति मरने के पीछे अपनी सास से किया है, और तू किस रीति अपने माता पिता और जन्मभूमि को छोड़कर ऐसे लोगों में आई है जिन को पहिले तू ने जानती थी, यह सब मुझे विस्तार के साथ बताया गया है।

12     यहोवा तेरी करनी का फल दे, और इस्राएल का परमेश्वर यहोवा जिसके पंखों के तले तू शरण लेने आई है तुझे पूरा बदला दे।

17     सो वह सांझ तक खेत में बीनती रही।

20     नाओमी ने अपनी बहू से कहा, वह यहोवा की ओर से आशीष पाए, क्योंकि उसने न तो जीवित पर से और न मरे हुओं पर से अपनी करूणा हटाई!

4. Ruth 2 : 2, 3, 8-12, 17 (to ,), 20 (to 1st .)

2     And Ruth the Moabitess said unto Naomi, Let me now go to the field, and glean ears of corn after him in whose sight I shall find grace. And she said unto her, Go, my daughter.

3     And she went, and came, and gleaned in the field after the reapers: and her hap was to light on a part of the field belonging unto Boaz, who was of the kindred of Elimelech.

8     Then said Boaz unto Ruth, Hearest thou not, my daughter? Go not to glean in another field, neither go from hence, but abide here fast by my maidens:

9     Let thine eyes be on the field that they do reap, and go thou after them: have I not charged the young men that they shall not touch thee? and when thou art athirst, go unto the vessels, and drink of that which the young men have drawn.

10     Then she fell on her face, and bowed herself to the ground, and said unto him, Why have I found grace in thine eyes, that thou shouldest take knowledge of me, seeing I am a stranger?

11     And Boaz answered and said unto her, It hath fully been shewed me, all that thou hast done unto thy mother in law since the death of thine husband: and how thou hast left thy father and thy mother, and the land of thy nativity, and art come unto a people which thou knewest not heretofore.

12     The Lord recompense thy work, and a full reward be given thee of the Lord God of Israel, under whose wings thou art come to trust.

17     So she gleaned in the field until even,

20     And Naomi said unto her daughter in law, Blessed be he of the Lord, who hath not left off his kindness to the living and to the dead.

5. रूत 4 : 13-17

13     तब बोअज ने रूत को ब्याह लिया, और वह उसकी पत्नी हो गई; और जब वह उसके पास गया तब यहोवा की दया से उसको गर्भ रहा, और उसके एक बेटा उत्पन्न हुआ।

14     तब स्त्रियों ने नाओमी से कहा, यहोवा धन्य है, जिसने तुझे आज छुड़ाने वाले कुटुम्बी के बिना नहीं छोड़ा; इस्राएल में इसका बड़ा नाम हो।

15     और यह तेरे जी में जी ले आनेवाला और तेरा बुढ़ापे में पालनेवाला हो, क्योंकि तेरी बहू जो तुझ से प्रेम रखती और सात बेटों से भी तेरे लिये श्रेष्ट है उसी का यह बेटा है।

16     फिर नाओमी उस बच्चे को अपनी गोद में रखकर उसकी धाई का काम करने लगी।

17     और उसकी पड़ोसिनों ने यह कहकर, कि नाओमी के एक बेटा उत्पन्न हुआ है, लड़के का नाम ओबेद रखा। यिशै का पिता और दाऊद का दादा वही हुआ॥

5. Ruth 4 : 13-17

13     So Boaz took Ruth, and she was his wife: and when he went in unto her, the Lord gave her conception, and she bare a son.

14     And the women said unto Naomi, Blessed be the Lord, which hath not left thee this day without a kinsman, that his name may be famous in Israel.

15     And he shall be unto thee a restorer of thy life, and a nourisher of thine old age: for thy daughter in law, which loveth thee, which is better to thee than seven sons, hath born him.

16     And Naomi took the child, and laid it in her bosom, and became nurse unto it.

17     And the women her neighbours gave it a name, saying, There is a son born to Naomi; and they called his name Obed: he is the father of Jesse, the father of David.

6. नीतिवचन 31 : 10, 13, 17, 18, 20, 26, 27, 30 (एक), 31

10     भली पत्नी कौन पा सकता है? क्योंकि उसका मूल्य मूंगों से भी बहुत अधिक है।

13     वह ऊन और सन ढूंढ़ ढूंढ़ कर, अपने हाथों से प्रसन्नता के साथ काम करती है।

17     वह अपनी कटि को बल के फेंटे से कसती है, और अपनी बाहों को दृढ़ बनाती है।

18     वह परख लेती है कि मेरा व्यापार लाभदायक है। रात को उसका दिया नहीं बुझता।

20     वह दीन के लिये मुट्ठी खोलती है, और दरिद्र के संभालने को हाथ बढ़ाती है।

26     वह बुद्धि की बात बोलती है, और उस के वचन कृपा की शिक्षा के अनुसार होते हैं।

27     वह अपने घराने के चाल चलन को ध्यान से देखती है, और अपनी रोटी बिना परिश्रम नहीं खाती।

30     ... जो स्त्री यहोवा का भय मानती है, उसकी प्रशंसा की जाएगी।

31     उसके हाथों के परिश्रम का फल उसे दो, और उसके कार्यों से सभा में उसकी प्रशंसा होगी॥

6. Proverbs 31 : 10, 13, 17, 18, 20, 26, 27, 30 (a), 31

10     Who can find a virtuous woman? for her price is far above rubies.

13     She seeketh wool, and flax, and worketh willingly with her hands.

17     She girdeth her loins with strength, and strengtheneth her arms.

18     She perceiveth that her merchandise is good: her candle goeth not out by night.

20     She stretcheth out her hand to the poor; yea, she reacheth forth her hands to the needy.

26     She openeth her mouth with wisdom; and in her tongue is the law of kindness.

27     She looketh well to the ways of her household, and eateth not the bread of idleness.

30     a woman that feareth the Lord, she shall be praised.

31     Give her of the fruit of her hands; and let her own works praise her in the gates.

7. 1 यूहन्ना 3 : 16, 18

16     हम ने प्रेम इसी से जाना, कि उस ने हमारे लिये अपने प्राण दे दिए; और हमें भी भाइयों के लिये प्राण देना चाहिए।

18     हे बालकों, हम वचन और जीभ ही से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करें।

7. I John 3 : 16, 18

16     Hereby perceive we the love of God, because he laid down his life for us: and we ought to lay down our lives for the brethren.

18     My little children, let us not love in word, neither in tongue; but in deed and in truth.



विज्ञान और स्वास्थ्य


1. 568 : 30-3

स्व-उन्मूलन क्रायश्चियन साइंस में एक नियम है, जिसके द्वारा त्रुटि के खिलाफ हमारे युद्ध में हम सच्चाई या मसीह के लिए सब कुछ छोड़ देते हैं। यह नियम स्पष्ट रूप से ईश्वर को ईश्वरीय सिद्धांत के रूप में व्याख्या करता है, - जीवन के रूप में, पिता द्वारा दर्शाया गया; सत्य के रूप में, पुत्र द्वारा प्रतिनिधित्व; प्यार से, माँ द्वारा प्रतिनिधित्व किया।

2. 454 : 17-24

ईश्वर और मनुष्य के लिए प्यार हीलिंग और शिक्षण दोनों में सच्चा प्रोत्साहन है। प्रेम प्रेरणा देता है, रोशनी करता है, नामित करता है और मार्ग प्रशस्त करता है। सही इरादों ने विचार, और ताकत और बोलने और कार्रवाई करने की स्वतंत्रता को चुटकी दी। सत्य की वेदी पर प्रेम पुरोहिती है। दिव्य प्रेम के लिए धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करें नश्वर मन के पानी पर आगे बढ़ने के लिए, और सही अवधारणा बनाएं। धीरज "को अपना पूरा काम करने दो॥"

3. 9 : 5-16

इन सवालों के जवाब में सभी प्रार्थनाओं का परीक्षण निहित है: क्या हम इस आज्ञा के कारण अपने पड़ोसी से बेहतर प्रेम करते हैं? क्या हम पुराने स्वार्थ का पीछा करते हैं, किसी चीज़ के लिए बेहतर प्रार्थना करने से संतुष्ट हैं, हालाँकि हम अपनी प्रार्थना के साथ लगातार रहकर अपने अनुरोधों की ईमानदारी का कोई सबूत नहीं देते हैं? अगर स्वार्थ ने दया को जगह दी है, तो हम अपने पड़ोसी को निस्वार्थ रूप से सम्मान देंगे, और उन्हें आशीर्वाद देंगे कि हमें अभिशाप दें; लेकिन हम इस महान कर्तव्य को कभी नहीं पूछेंगे कि यह किया जाए। इससे पहले कि हम अपनी आशा और विश्वास के फल का आनंद ले सकें, हमें एक क्रास उठाना होगा।

4. 205 : 22-31

जब हमें पता चलता है कि एक मन है, तो अपने पड़ोसी को अपने जैसे प्यार करने का ईश्वरीय नियम सामने आता है; जबकि कई सत्तारूढ़ मन में एक विश्वास मनुष्य के मन, एक ईश्वर के प्रति सामान्य बहाव में बाधा डालता है, और मानव विचारों को विपरीत रास्तों पर ले जाता है जहां स्वार्थ राज करता है।

स्वार्थ, मानवीय अस्तित्व की किरण को सत्य के पक्ष की ओर ले जाता है, सत्य की ओर नहीं। मन की एकता का खंडन हमारे वजन को पैमाने में फेंकता है, लेकिन आत्मा, ईश्वर, अच्छाई और सामग्री के पैमाने पर नहीं।

5. 88 : 18-20

किसी के पड़ोसी को स्वयं के रूप में प्यार करना, एक दिव्य विचार है; लेकिन इस विचार को भौतिक इंद्रियों के माध्यम से कभी नहीं देखा, महसूस किया जा सकता है और न ही समझा जा सकता है।

6. 57 : 18-30

खुशी आध्यात्मिक है, जो सत्य और प्रेम से पैदा होती है। यह निःस्वार्थ है; इसलिए यह खुशी अकेले मौजूद नहीं हो सकती है बल्कि सभी मानव जाति को इसे साझा करने की आवश्यकता है।

मानवीय स्नेह व्यर्थ नहीं बहाया जाता, भले ही उसका कोई प्रतिफल नहीं मिलता। प्रेम प्रकृति को समृद्ध करता है, बड़ा करता है, शुद्ध करता है और उसे उन्नत करता है। पृथ्वी के ठंढे धमाके स्नेह के फूलों को उखाड़ सकते हैं, और उन्हें हवाओं में बिखेर सकते हैं; लेकिन शारीरिक संबंधों का यह विचलन ईश्वर के प्रति अधिक निकटता से विचार करने का कार्य करता है, क्योंकि प्रेम संघर्षशील हृदय का समर्थन करता है, जब तक कि वह दुनिया को छोड़ नहीं देता और स्वर्ग के लिए अपने पंखों को खोलना शुरू कर देता है।

7. 266 : 6-16

क्या व्यक्तिगत मित्रों के बिना अस्तित्व आपके लिए शून्य होगा? तब वह समय आएगा जब तुम अकेले हो जाओगे, सहानुभूति के बिना रह जाओगे; लेकिन यह प्रतीत होने वाला शून्य पहले से ही दिव्य प्रेम से भरा हुआ है। जब विकास का यह समय आता है, भले ही आप व्यक्तिगत खुशियों की भावना में व्यस्त रहें, आध्यात्मिक प्रेम आपको वह स्वीकार करने के लिए मजबूर करेगा जो आपके विकास को सबसे अच्छा बढ़ावा देता है। मित्र विश्वासघात करेंगे और शत्रु बदनामी करेंगे, जब तक कि सबक तुम्हें ऊँचा उठाने के लिए पर्याप्त न हो; क्योंकि "मनुष्य का चरम ईश्वर का अवसर है।" लेखक ने उपरोक्त भविष्यवाणी और उसके आशीर्वाद का अनुभव किया है।

8. 518 : 13-21

ईश्वर स्वयं का विचार देता है, अधिक के लिए कम करने के लिए, और बदले में, उच्च हमेशा कम की रक्षा करता है। सभी को एक ही सिद्धांत, या पिता, को एक भव्य भाईचारे में रखते हुए, आत्मा में समृद्ध गरीबों की मदद करते हैं। और धन्य है वह आदमी जो दूसरे की भलाई में अपनी भलाई जानता है, अपने भाई की आवश्यकता को देखता है और उसकी आपूर्ति करता है। प्रेम कमजोर आध्यात्मिक को, अमरता, और अच्छाई देता है, जो सभी के माध्यम से चमकता है जैसे कि कली के माध्यम से खिलता है।

9. 192 : 27-31

हम ईश्वरीय तत्वमीमांसा की समझ में अपने गुरु के उदाहरण का अनुसरण करके सत्य और प्रेम के नक्शेकदम पर चलते हैं। ईसाई धर्म सच्ची चिकित्सा का आधार है। जो कुछ भी मानव विचार को निःस्वार्थ प्रेम के अनुरूप रखता है, वह सीधे दैवीय शक्ति प्राप्त करता है।

10. 138 : 17-31

यीशु ने ईसाई युग में समस्त ईसाई धर्म, धर्मशास्त्र और उपचार के लिए मिसाल कायम की। मसीहियों को आज भी उसी प्रकार सीधे आदेश दिए गए हैं, जैसे पहले थे, कि वे मसीह के समान बनें, मसीह-आत्मा को धारण करें, मसीह के उदाहरण का अनुसरण करें, तथा बीमारों के साथ-साथ पापियों को भी चंगा करें। ईसाई धर्म के लिए पाप की अपेक्षा बीमारी को दूर करना अधिक आसान है, क्योंकि बीमार लोग दर्द को छोड़ने के लिए अधिक इच्छुक होते हैं, जबकि पापी लोग पापपूर्ण, इंद्रियों के तथाकथित सुख को छोड़ने के लिए अधिक इच्छुक होते हैं। ईसाई आज भी इसे उतनी ही आसानी से साबित कर सकते हैं जितनी आसानी से सदियों पहले साबित किया गया था।

हमारे गुरु ने प्रत्येक अनुयायी से कहा: "तुम सारे जगत में जाओ और हर प्राणी को सुसमाचार प्रचार करो! ...बीमारों को चंगा करो! ...अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो!" यह यीशु का धर्मशास्त्र ही था जिसने बीमारों और पापियों को चंगा किया।

11. 571 : 15-21

हर समय और सभी परिस्थितियों में, अच्छाई के साथ बुराई को दूर करें। अपने आप को जानें, और ईश्वर ज्ञान और बुराई पर विजय के अवसर की आपूर्ति करेगा। प्यार की कशमकश में जकड़े, मानवीय घृणा आप तक नहीं पहुंच सकती। एक उच्च मानवता का सीमेंट एक देवत्व में सभी हितों को एकजुट करेगा।

12. 264 : 24-27

आध्यात्मिक जीवन और आशीर्वाद ही प्रमाण हैं, जिसके द्वारा हम सच्चे अस्तित्व को पहचान सकते हैं और उस अकथनीय शांति को महसूस कर सकते हैं जो आध्यात्मिक प्रेम को अवशोषित करने से आती है।

13. 467 : 9-16

यह अच्छी तरह समझा जाना चाहिए कि सभी पुरुषों का एक मन, एक ईश्वर और पिता, एक जीवन, सत्य और प्रेम होता है। यह तथ्य स्पष्ट होते ही मानव जाति अनुपात में परिपूर्ण हो जाएगी, युद्ध बंद हो जाएगा और मनुष्य का सच्चा भाईचारा स्थापित हो जाएगा। कोई अन्य देवता नहीं, कोई दूसरा नहीं, बल्कि एक ही मार्गदर्शक का मन, मनुष्य ईश्वर की समानता है, शुद्ध और शाश्वत है, और उसके पास वह मन है जो मसीह में भी था।

14. 266 : 18 (सार्वभौमिक)-19

सार्वभौमिक प्रेम क्रिश्चियन साइंस में दिव्य मार्ग है।


दैनिक कर्तव्यों

मैरी बेकर एड्डी द्वारा

दैनिक प्रार्थना

प्रत्येक दिन प्रार्थना करने के लिए इस चर्च के प्रत्येक सदस्य का कर्तव्य होगा: "तुम्हारा राज्य आओ;" ईश्वरीय सत्य, जीवन और प्रेम के शासन को मुझमें स्थापित करो, और मुझ पर शासन करो; और तेरा वचन सभी मनुष्यों के स्नेह को समृद्ध कर सकता है, और उन पर शासन करो!

चर्च मैनुअल, लेख VIII, अनुभाग 4

उद्देश्यों और कृत्यों के लिए एक नियम

न तो दुश्मनी और न ही व्यक्तिगत लगाव मदर चर्च के सदस्यों के उद्देश्यों या कृत्यों को लागू करना चाहिए। विज्ञान में, दिव्य प्रेम ही मनुष्य को नियंत्रित करता है; और एक क्रिश्चियन साइंटिस्ट प्यार की मीठी सुविधाओं को दर्शाता है, पाप में डांटने पर, सच्चा भाईचारा, परोपकार और क्षमा में। इस चर्च के सदस्यों को प्रतिदिन ध्यान रखना चाहिए और प्रार्थना को सभी बुराईयों से दूर करने, भविष्यद्वाणी, न्याय करने, निंदा करने, परामर्श देने, प्रभावित करने या गलत तरीके से प्रभावित होने से बचाने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

चर्च मैनुअल, लेख VIII, अनुभाग 1

कर्तव्य के प्रति सतर्कता

इस चर्च के प्रत्येक सदस्य का यह कर्तव्य होगा कि वह प्रतिदिन आक्रामक मानसिक सुझाव से बचाव करे, और भूलकर भी ईश्वर के प्रति अपने कर्तव्य की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, अपने नेता और मानव जाति के लिए। उनके कामों से उन्हें आंका जाएगा, — और वह उचित या निंदनीय होगा।

चर्च मैनुअल, लेख VIII, अनुभाग 6